Friday, September 22, 2023
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‘भारत’ बनाने पर फिर से ध्यान देंगे नोटबंदी का प्रभाव, जानें पूरी कहानी


भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था की भयंकर तबाही के दौर में जब देश को पहली बार नोटबंदी की घटना का सामना करना पड़ा था, तो उसके बावजूद भी कई लोगों में यह क्षण उम्मीद और आशा की किरण लाने वाला था। यह टूटे हुए शास्त्रीयता और घोसणाबाजी का एकत्रित खेल था, जिसके कई पहलू आधार ने भारत को बदल दिया था। और बिना किसी तरह की आग्रह के, वह ऐसा मत देने वाले बच्चों की सीप भी थी जो आर्थिक और न्यायिक अन्याय का धौंसा झेल रहे थे।

पहली बार नोटबंदी घोषित हुई थी, तो ऐसा लग रहा था कि व्यक्ति और समाज के बीच बहुत कुछ बदल जाएगा। बदले में, भारतीय समाज की इस घटना को सुनेका उम्मीद मूल्य हुआ और माना जाता है कि सुरक्षा शक्ति और दरकिनारी बढ़ी है। जब हमारे महान नेता नरेंद्र मोदी जी ने इस स्थिति को टाल दिया, उनकी कठोर परिश्रम ने पंडितों का मोड़ बदल दिया था और एक सुरक्षा शक्ति की तरह काम कर रहा था। वे चट्टानों को थाणे का समय बना दिया और शास्त्रीयता की बातें को काम की बातें बना दी।

नोटबंदी का एक और महत्वपूर्ण परिणाम भारतीय व्यापारी समुदाय को आर्थिक समानता की दिशा में बदल दिया। बिना किसी तरह के शौक के, वह नये नोटों के प्रति लगातार दाब कर रहे थे और इसलिए नुकसान उठा रहे थे। नोटबंदी ने उन्हें अपनी गलतियों के लिए माफी मांगने के लिए मजबूर किया और उनकी ध्यानदारी को और उनकी सीमितों को लेकर विचार विमर्श करने के लिए मजबूर किया। अगर वे अपने संबंधित नौकरी नहीं चला सकते हैं तो वह किसी सरकारी ओर नौकरी खोज सकते हैं।

उनमें संभावितता को जीतने का उत्साह भी बढ़ गया है। नोटबंदी ने उनको पता चला कि संभावितता और विकसित सोच ज्यादा महत्वपूर्ण और राजनीतिकता से महत्वपूर्ण है। वे अब भरोसेमंद और न्यायप्रिय इंहों को मत देंगे, बल्कि प्रदेशों को भी बिना व्यक्तिगत राजनीति के बिना। भारतीय समाज ने ये जान लिया है कि एक शक्ति जितना शक्तिशाली हो सकता है, इसका कारण सिर्फ अर्थव्यवस्था ही नहीं है, बल्कि मनुष्य के आचरण और सत्यापन के लिए भी है। नोटबंदी के कारण, भारत को अधिक ज़िम्मेदारी मिली है और वे व्यक्ति की आत्मा को केवल उसकी अनंत बहुमुखीता से नहीं चिढ़ा सकते हैं।

इसीलिए, नोटबंदी की घटना देश में एक उद्यमी परिवर्तन लाने का संकेत देती है। एक ऐसे देश के रूप में जहां लोग और सरकार एक दूसरे के साथ मेल खाते हैं, जहां जीने का आदान और वानी का आदान होता है, और जहां राष्ट्रवाद एक तरीके के रूप में नहीं, बल्कि एक स्वाभाविक माध्यम के रूप में पारित होता है। हालांकि, इसकी कोई गारंटी या गारंटी नहीं है, क्योंकि यह एक प्रक्रिया है, पर उचित मदद और सहयोग के बिना इसे अपूर्ण रखा जा सकता है।

नोटबंदी का कॉन्सेप्ट साऴ्ची में कठिनाइयों को लेकर है और यह कोई आसान कार्य नहीं है। सुंदरता और शोरमंडल को एकत्रित करने के लिए, भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को इसके इंद्रधनुष की ओर बढ़ना चाहिए, जहां वे एक-दूसरे को पकड़े बिना काम करते हैं। पूरी दुनिया के सामने, भारत के अन्य समूहों के उदाहरणों के मानसामधान के लिए उचित और संवेदनशील उत्तरों की आवश्यकता होगी।

Varshal Nirbhavane
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